चुनावी तनाव झेल कर लौटे कर्मी विशेषकर केंद्र सरकार के कर्मी स्वयम को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।चुनावी तनाव झेल कर लौटे कर्मी विशेषकर केंद्र सरकार के कर्मी स्वयम को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की विधान सभा के लिए कराये जा रहे चुनावों के छह चरण निर्विघ्न पूर्ण हो चुके हैं और अब शेष चरण भी पूर्णता ग्रहण करने जा रहे हैं।इन चुनावों की सफलता का सेहरा बेशक चुनाव आयोग अपने सर पर बाँध कर खुश होता रहे मगर चुनावों को सफलता से पूर्ण कराने में सरकारी कर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी चुनावी तनाव झेल कर लौटे कर्मी विशेषकर केंद्र सरकार के कर्मी स्वयम को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। चुनावी तनाव झेल कर लौटे कर्मी विशेषकर केंद्र सरकार के कर्मी स्वयम को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
सबसे पहले तो पद की वरीयता +गरिमा की उपेक्षा करके ड्यूटी लगाई गई अपमान का घूँट पे कर ड्यूटी करने को मजबूर ये चुनाव अधिकारी जब दिएर रात घर लौटे तो उन्हें चुनाव के तुरंत बाद का अवकाश [घोषणा के बावजूद]नहीं दिया गया।यहाँ तक की रक्षा लेखा नियंत्रक सेना में तो घरों से फोन करके सभी कर्मियों को बुलवाया गया \बैंक जैसे संगठित संस्थाओं में जहां अवकाश का माहौल रहा वहीं सी डी ए में मन मार कर व्यवस्था को कोसते हुए काम करते कर्मे देखे गए।
हद तो तब हो गई जब महीने की आखरी तारीख को बांटी जाने वाली तनख्वाह बांटी ही नहीं गई \
प्रत्येक चुनावों के बाद इस प्रकार की उपेक्षा के खात्मे को अब चुनाव आयोग +निर्वाचन अधिकारी +सम्बन्धित विभागाध्यक्ष को मिल बैठ कर विचार करने को समय निकालना होगा ।
उत्तर प्रदेश की विधान सभा के लिए कराये जा रहे चुनावों के छह चरण निर्विघ्न पूर्ण हो चुके हैं और अब शेष चरण भी पूर्णता ग्रहण करने जा रहे हैं।इन चुनावों की सफलता का सेहरा बेशक चुनाव आयोग अपने सर पर बाँध कर खुश होता रहे मगर चुनावों को सफलता से पूर्ण कराने में सरकारी कर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी चुनावी तनाव झेल कर लौटे कर्मी विशेषकर केंद्र सरकार के कर्मी स्वयम को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। चुनावी तनाव झेल कर लौटे कर्मी विशेषकर केंद्र सरकार के कर्मी स्वयम को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
सबसे पहले तो पद की वरीयता +गरिमा की उपेक्षा करके ड्यूटी लगाई गई अपमान का घूँट पे कर ड्यूटी करने को मजबूर ये चुनाव अधिकारी जब दिएर रात घर लौटे तो उन्हें चुनाव के तुरंत बाद का अवकाश [घोषणा के बावजूद]नहीं दिया गया।यहाँ तक की रक्षा लेखा नियंत्रक सेना में तो घरों से फोन करके सभी कर्मियों को बुलवाया गया \बैंक जैसे संगठित संस्थाओं में जहां अवकाश का माहौल रहा वहीं सी डी ए में मन मार कर व्यवस्था को कोसते हुए काम करते कर्मे देखे गए।
हद तो तब हो गई जब महीने की आखरी तारीख को बांटी जाने वाली तनख्वाह बांटी ही नहीं गई \
प्रत्येक चुनावों के बाद इस प्रकार की उपेक्षा के खात्मे को अब चुनाव आयोग +निर्वाचन अधिकारी +सम्बन्धित विभागाध्यक्ष को मिल बैठ कर विचार करने को समय निकालना होगा ।