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Saturday, February 04, 2012


मेरठ की छावनी परिषद् में  भ्रस्ताचार के ज्वलंत मुद्दों से आम  जन का ध्यान हटाने को  बासी कड़ी में उबाल लाने की पुराणी रिवायत है जिसका पालन आजकल भी हो रहा है|अतिक्रमण और  अनाधिक्रत मोबाईल टावर काण्ड में गले गले तक फंसे अधिकारी +कर्मचारी +और टावर काण्ड में चिन्हित पार्षद एक जुट हो गए हैं और अपने बचाव के लिए शिवाजी कालोनी उर्फ़ लाल क्वाटरों को  खूब उछाल रहे हैं|इस कार्य में इन्हें स्थानीय मीडिया के एक हिस्से का सहयोग भी भरपूर मिल रहा है|
     आज़ादी के बाद विस्थापितों के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार ने  तत्कालीन  बोर्ड को मेरठ+आगरा+जालंधर+पुणे आदि में पुनर्वास कालोनियां बनाने का दायित्व सौंपा|यह ना लाभ ना हानि के आधार पर वितरित किये जाने थे|एक निश्चित अवधि तक केयर टेकर की  भूमिका निभा कर  कैंट   बोर्ड द्वारा इन लो इनकम हाऊसिंग स्कीम को लाभार्थिओं को सौंपा जाना था |कुछ समय पश्चात जब ये पिछड़ी +उपेक्षित कालोनी विकसित हो गई तो सबकी निगाह में यह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन गई।नतीजतन  तत्कालीन पार्षद+अधिकारियों ने एक अनुचित रिसोलुशन पास करा कर कैंट बोर्ड के कर्मियों को ही विस्थापित घोषित कर दिया और एक पूरी कालोनी कैंट बोर्ड के कर्मियों को सौंप दी गई।
    उल्लेखनीय है कि कैंट कर्मियों को  सरकारी सेवक होने के नाते सरकारी आवास तो दे दिए गए मगर उन्हें सरकारी किराया भत्ता भी दिया जाता रहा है।जबकि सरकारी आदेशानुसार सरकारी आवास दिए जाने पर  मकान किराया भत्ता नहीं दिया जाता।
     समय समय पर लीगल रेसिडेंट्स को  अनाधिक्रत +अतिक्र्मंकारी घोषित करके मकान खाली करने को प्रताड़ित किया जाता रहा।कुछ मकान कब्जाए भी जा चुके हैं और कैंट बोर्ड कर्मियों को दिए जा चुके हैं ।इसके अलावा ३० से अधिक मकान खाली करा कर अनाधिक्रत कब्जेदारों को दे दिए गए हैं।इस परोपकार के लिए ५००० से लेकर ७५००० रुपये तक बोर्ड के खाते में  भी जमा करवाए गए । टेबल के नीचे कया हुआ होगा समझा जा सकता है।
     एक  और रिसोलुशन पास करा कर १९८२ में कालोनी के रखरखाव को कैंट बोर्ड ने हाथ पीछे खीच लिए मगर  मासिक किश्त को किराए का रूप देकर लगातार किराए बढाने को नोटिस जारी होते रहे।
     कैंट बोर्ड के इस तानाशाही कदम के विरोध में पुणे +जालंधर+आगरा के तर्ज़ पर मेरठ के लोग भी अदालत गए ।हाई कोर्ट में किराए में वृधि के अपने निर्णय को सही ठहराने को गलत शपथ पत्र दाखिल किया गया जिसमे मेरठ के कैंट बोर्ड ने दावा किया कि कालोनी के रखरखाव के लिए खर्चा बढ जाने से किराया बढाया जाना जरूरी है।इस दलील को माननीय काटजू[तत्कालीन जज ] ने कालोनी वासियों की अपील खारिज कर दी गौर तलब हे की इन्ही माननीय काटजू जी ने जालंधर की कालोनी वासिओं को राहत देते हुए कैंट बोर्ड के सभी दावों को खारिज कर दिया था आज कल यही काटजू जी प्रेस परिषद् के अध्यक्ष हैं शायद उन्हें अभी भी इस केस के विषय में कुछ याद रहा होगा।
     अब फिर से इस मुद्दे को उछाल कर   दशकों पूर्व पुनार्स्थापितों को बुढापे में मानसिक उत्पीडित करके  अपने घरों से बेदखल करने को षड्यंत्र रचे जा रहे हैं।