स्कूलों में शिक्षा सत्र प्रारम्भ हो गया है स्कूलों में चहल पहल +केंटीनोंऔर साइकिल स्टैंड के स्तर+ फीस में बढोत्तरी+बढ़ता किताबों का बोझ ++++आदि अनेक समस्यायों से अविभावकों को दो चार होना पड़ रहा है।
यहाँ पर ही बस नहीं होती सेशन के बीच में भी अनेक खर्चों का बोझ झेलने को अभिशिप्त है।ऐसे खर्चों में से एक खर्चा प्रोजेक्ट का भी है\
बचपन में सरकारी स्कूलों में पढाई करते समय बीच बीच में क्राफ्ट भी कराया जाता था\ स्कूल में एक पीरियड क्राफ्ट का भी होता था इस में झोपडी+ किताब की जिल्द+फ़ाइल+आर्टिफिशियल फूल आदि बनवाये जाते थे इन्हें रोज़गार परक शिक्षा प्रदान की जाती थी।समय के साथ साथ ट्रेंड भी बदलता गया ।क्राफ्ट का पीरियड किसी और बैकलाग को निबटाने के काम आने लगा सो क्राफ्ट को घर से बना कर लाने के आदेश हो गए\माँ बाप की मदद से सबसे सस्ते कार्फ्ट बना कर पासिंग मार्क्स हासिल करने का चलन चल निकला।
वर्तमान को माडर्न ज़माना कहा जाता है यानि इस हाईटेक होते जा रही पढाई में स्टुडेंट्स का हाथ से क्राफ्ट बनाना जरूरी नहीं रह गया है अब तो माँ बाप के पास भी बच्चों के लिए तक समय नहीं है तो क्राफ्ट कहाँ से बनवायेंगे ।
पुराने क्राफ्ट को ही विकसित करके शायद अब प्रोजेक्ट का नाम दे दिया गया है ।छोठी से लेकर बड़ी क्लास तक प्रोजेक्ट को लाजमी किया गया है ।सरकार का विकास का दावा यहाँ चरित्रार्थ होता दीखता है जब अविभावक स्वयम दो से लेकर चार डिजिट्स तक खर्च करके अपने होनहार को रेडीमेड प्रोजेक्ट दिलवाते हैं।इससे बेशक बच्चा पासिंग मार्क्स लाता है मगर विषय में उसका ज्ञान अधूरा ही रहता है ।
पहले एक आध ही प्रोजेक्ट की दूकान हुआ करती थी मगर अब तो प्रोजेक्ट के तिजारती मोहल्लों से निकल कर बाज़ार में आने लाग गए हैं।ये और बात है की आयकर विभाग की नज़रों से दूर हैं।
रट्टा फिकेशन से पास होकर वह किसी काम का नहीं रहता ।छौटी नौकरिओन में इस्टर्न यूपी और बिहार के होनहार महनती छात्र आगे निकल जाते हैं और बड़ी नौकरिओन के लिए इन्हें फिर से महंगी कोचिंग लेनी पड़ती है।
अब ऐसा भी नहीं होता की सभी व्यवसाईक परिवार से हों और सभी को नौकरियां मिल जाये सो ऐसा भी संभव नहीं हो सकता ।उत्तर प्रदेश में बेरोजगार भत्ते की घोषणा के बाद से रोज़गार के दफ्तरों पर रोज़ाना लगती लंबी लाईने इसका गवाह हैं ।
बेशक काबिल सिब्बल साहब के मानव संसाधन विकास मंत्रालय को स्कूली शिक्षा वेरी गुड और उच्च शिक्षा एक्सीलेंट दिखाई दे रही है मगर अन्ना हजारे +बाबा रामदेव आदि के आयोजनों में व्यवस्था से असंतुष्ट युवाओं की भीड़ बड़ती ही जा रही है
कहने का अभिप्राय है की शिक्षण संस्थानों में एक क्लास क्राफ्ट की की आवश्यक है और क्लास में ही शिक्षक की गाइडेंस में क्राफ्ट के प्रति रूचि और निपुर्ण्ता प्रदान की जानी चाहिए\इससे ना केवल अविभावकों के सर से करचे का बोझ कम होगा वरन बेरोजगारी की लाइन भी छोठी हो सकेगी \
यहाँ पर ही बस नहीं होती सेशन के बीच में भी अनेक खर्चों का बोझ झेलने को अभिशिप्त है।ऐसे खर्चों में से एक खर्चा प्रोजेक्ट का भी है\
बचपन में सरकारी स्कूलों में पढाई करते समय बीच बीच में क्राफ्ट भी कराया जाता था\ स्कूल में एक पीरियड क्राफ्ट का भी होता था इस में झोपडी+ किताब की जिल्द+फ़ाइल+आर्टिफिशियल फूल आदि बनवाये जाते थे इन्हें रोज़गार परक शिक्षा प्रदान की जाती थी।समय के साथ साथ ट्रेंड भी बदलता गया ।क्राफ्ट का पीरियड किसी और बैकलाग को निबटाने के काम आने लगा सो क्राफ्ट को घर से बना कर लाने के आदेश हो गए\माँ बाप की मदद से सबसे सस्ते कार्फ्ट बना कर पासिंग मार्क्स हासिल करने का चलन चल निकला।
वर्तमान को माडर्न ज़माना कहा जाता है यानि इस हाईटेक होते जा रही पढाई में स्टुडेंट्स का हाथ से क्राफ्ट बनाना जरूरी नहीं रह गया है अब तो माँ बाप के पास भी बच्चों के लिए तक समय नहीं है तो क्राफ्ट कहाँ से बनवायेंगे ।
पुराने क्राफ्ट को ही विकसित करके शायद अब प्रोजेक्ट का नाम दे दिया गया है ।छोठी से लेकर बड़ी क्लास तक प्रोजेक्ट को लाजमी किया गया है ।सरकार का विकास का दावा यहाँ चरित्रार्थ होता दीखता है जब अविभावक स्वयम दो से लेकर चार डिजिट्स तक खर्च करके अपने होनहार को रेडीमेड प्रोजेक्ट दिलवाते हैं।इससे बेशक बच्चा पासिंग मार्क्स लाता है मगर विषय में उसका ज्ञान अधूरा ही रहता है ।
पहले एक आध ही प्रोजेक्ट की दूकान हुआ करती थी मगर अब तो प्रोजेक्ट के तिजारती मोहल्लों से निकल कर बाज़ार में आने लाग गए हैं।ये और बात है की आयकर विभाग की नज़रों से दूर हैं।
रट्टा फिकेशन से पास होकर वह किसी काम का नहीं रहता ।छौटी नौकरिओन में इस्टर्न यूपी और बिहार के होनहार महनती छात्र आगे निकल जाते हैं और बड़ी नौकरिओन के लिए इन्हें फिर से महंगी कोचिंग लेनी पड़ती है।
अब ऐसा भी नहीं होता की सभी व्यवसाईक परिवार से हों और सभी को नौकरियां मिल जाये सो ऐसा भी संभव नहीं हो सकता ।उत्तर प्रदेश में बेरोजगार भत्ते की घोषणा के बाद से रोज़गार के दफ्तरों पर रोज़ाना लगती लंबी लाईने इसका गवाह हैं ।
बेशक काबिल सिब्बल साहब के मानव संसाधन विकास मंत्रालय को स्कूली शिक्षा वेरी गुड और उच्च शिक्षा एक्सीलेंट दिखाई दे रही है मगर अन्ना हजारे +बाबा रामदेव आदि के आयोजनों में व्यवस्था से असंतुष्ट युवाओं की भीड़ बड़ती ही जा रही है
कहने का अभिप्राय है की शिक्षण संस्थानों में एक क्लास क्राफ्ट की की आवश्यक है और क्लास में ही शिक्षक की गाइडेंस में क्राफ्ट के प्रति रूचि और निपुर्ण्ता प्रदान की जानी चाहिए\इससे ना केवल अविभावकों के सर से करचे का बोझ कम होगा वरन बेरोजगारी की लाइन भी छोठी हो सकेगी \